बढ़ रही आशीष की मुश्किलें, हिंसा मामले में हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद मुख्य आरोपी आशीष मिश्र मोनू की तरफ से जिला अदालत में जहां केस को ही सिरे से खारिज करने की बात कही जा रही थी, वहीं सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मंत्री पुत्र को दोहरा झटका लगा है। जिला अदालत में आरोप तय करने को लेकर जहां 26 अप्रैल की तारीख तय है, वहीं उससे पहले ही 25 अप्रैल तक आशीष मिश्र को सुप्रीम कोर्ट ने वापस आत्मसमर्पण करने का आदेश दे दिया है। जमानत पर छूटे मुख्य आरोपी आशीष की ओर से अदालत में डिस्चार्ज एप्लीकेशन दी गई और जोरदार तरीके से यह बात उठाई गई कि उसके खिलाफ मुकदमा चलने लायक भी कोई सबूत नहीं हैं। आशीष मिश्र मोनू की जमानत के बाद तिकुनिया हिंसा से जुड़े गवाहों पर हमलों ने भी उसकी मुश्किल बढ़ाई। सुप्रीम कोर्ट में भी गवाहों पर हमला और उनकी सुरक्षा को लेकर कई बार मसला उठा। एक बार तो गवाह पर हमले के मामले में अदालत ने अपने बयान में खुद कहा था कि, क्यों न आशीष मिश्र की जमानत रद्द कर दी जाए। 10 फरवरी को हाईकोर्ट ने आशीष मिश्र की जमानत आदेश पर फैसला उनके पक्ष में सुनाया, लेकिन जमानत आदेश में त्रुटि होने पर 11 फरवरी को अदालत में पहले करेक्शन एप्लीकेशन डाली गई, जिस पर 14 फरवरी को जमातन आदेश आया। लिहाजा 15 फरवरी को आशीष मिश्र मोनू की रिहाई हो सकी। लेकिन, दो महीने बाद ही पूरा सीन बदल गया और उसके लिये वापस जेल के रास्ते खुल गए, जिसमें सबसे ज्यादा उसकी मुश्किल गवाहों पर हमले के मामले से बढ़ी। 10 मार्च को तिकुनिया थाना क्षेत्र के डांगा इलाके में तिकुनिया हिंसा के गवाह दिलजोत सिंह पर हमला हुआ। उसके बाद अप्रैल महीने में रामपुर में हरदीप सिंह पर हमला हुआ। 10 मार्च को तिकुनिया थाना में रिपोर्ट दर्ज कराने वाले गवाह दिलजोत सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि जब वह 10 मार्च को डांगा इलाके से गन्ना भरी ट्रॉली लेकर गुजर रहा था तभी भाजपा की जीत का जश्न मना रहे लोगों ने उससे बदसलूकी की और विरोध करने पर बेल्ट से पिटाई कर दी।