सूखा है वेस्ट के हैंड पंपों का गला, गर्मी के कारण तापमान बढ़ने लगा है, पंचायतों में लगे हैंडपंपों के हलक भी सूखने लगे हैं। लोगों की शिकायतों के बाद जांच हुई तो जिले में 180 हैंडपंप खराब मिले हैं। इन क्षेत्रों में ग्रामीणों को जल संकट का डर सताने लगा। अधिकारियों ने रिबोर कर इन हैंडपंपों को दोबारा शुरू करने का दावा किया है। जिले में 1134 पंचायत हैं, जलीलपुर ब्लॉक डार्क जोन में है। अंधाधुंध जल दोहन से भूगर्भ जल स्तर गिरा है। पंचायतों में ग्रामीणों को पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए इंडिया मार्का हैंडपंप लगे हैं। हैंडपंप जल निगम लगाता है, जबकि इनकी मरम्मत व देखभाल की जिम्मेदारी पंचायतों की होती है। डीपीआरओ सतीश कुमार ने बताया कि 1134 पंचायतों में 39 हजार हैंडपंप लगे हैं। सीडीओ के निर्देश पर हैंडपंपों की स्थिति जानने के लिए सर्वे कराया गया था। जांच में 180 हैंडपंप खराब मिले हैं। जो पंचायतों को रिबोर कराने हैं। पंचायतों को कार्रवाई के निर्देश दे दिए हैं।
विकास भवन आए मोहम्मदपुर देवमल तथा कोतवाली ब्लॉक के ग्रामीणों का आरोप है कि गांवों में कुछ प्रभावशाली लोगों ने सरकारी हैंडपंप अपने मकानों के पास लगवा लिए है। ये लोग सरकारी हैंडपंप को निजी हैंडपंप की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
आरोप है कि हैंडपंप लगाने में मानकों का पालन नहीं हुआ है। कुछ मोहल्लों में एक से अधिक हैंडपंप लगे हैं। जबकि कुछ मोहल्लों में दूर-दूर तक हैंडपंप नहीं है। हैंडपंप खराब पड़े हैं, इससे गर्मी बढ़ने पर पेय जल का संकट बढ़ सकता है। डीपीआरओ सतीश कुमार का कहना है कि उनके पास कोई ग्रामीण इस तरह की शिकायत लेकर नहीं आया है। मामला आने पर जांच कराई जाएगी। अलग से नहीं मिलता कोई फंड डीपीआरओ सतीश कुमार ने बताया कि पंचायतों को हैंडपंपों के रिबोर के लिए अलग से कोई फंड शासन से नहीं मिलता है। पंचायतों को खराब हैंडपंपों की मरम्मत तथा रिबोर राज्य वित्त आयोग से मिले धन से ही कराना होता है। एक हैंडपंप के रिबोर में 40 हजार से 45 हजार रुपये खर्च हो जाते हैं। पहाड़ी क्षेत्र में एक रिबोर में दो से ढाई लाख तक खर्च हो जाते हैं। हल्दौर ब्लॉक कि पंचायत पोटा के प्रधान चौधरी विनय कुमार का कहना है कि पानी मूलभूत आवश्यकताओं में है, इसलिए आपातकालीन परिस्थितियों में हैंडपंपों के रिबोर व मरम्मत के लिए फंड दिया जाना चाहिए। @Back To Home
सूखा है वेस्ट के हैंड पंपों का गला
